Lekhika Ranchi

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आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-


96 . मंजुघोषा का प्रभाव : वैशाली की नगरवधू

कुटिया में सामग्री बहुत संक्षिप्त थी । परन्तु कुटी में घुसते ही जिस वस्तु पर अम्बपाली की दृष्टि पड़ी , उसे देखते ही वह आश्चर्यचकित हो गईं। वह जड़वत् खड़ी उस वस्तु को देखती रह गईं । वह वस्तु एक महाघ वीणा थी जो चन्दन की चौकी पर रखी थी । वीणा का विस्तार तो अद्भुत था ही , उसका निर्माण भी असाधारण था । वह साधारण मनुष्य के कौशल से बनी प्रतीत नहीं होती थी । उस पर अति अलौकिक हाथीदांत की पच्चीकारी का काम हो रहा था और उसमें जो तुम्बे काम में लाए गए थे उनके विस्तार तथा सुडौलता का वर्णन ही नहीं हो सकता था । देवी अम्बपाली बड़ी देर तक उस वीणा को आंखें फाड़ - फाड़कर देखती रहीं , उन्होंने उसे पहचान लिया था । वह इस बात से बड़ी विस्मित थीं कि इस असाधारण वीणा को लाया कौन ? और इस कुटी के एकान्त स्थान में इस दिव्य वीणा को लेकर रहने तथाच अनायास ही दुर्दान्त सिंह को मार गिराने की शक्तिवाला यह सरल वीर तरुण है कौन ?

एक बार उन्होंने फिर सम्पूर्ण कुटिया में दृष्टि फेंकी, दूसरी ओर पर्णभित्ति पर दो तीन बर्छ, एक विशाल धनुष और दो तूणीर बाणों से सम्पन्न टंगे थे, एक भारी खड्ग भी एक कोने में लटक रहा था । कुटी के बीचोंबीच एक बड़ा - सा शिलाखण्ड था जिस पर एक सिंह की समूची खाल पड़ी थी । उस पर एक आदमी भलीभांति सो सकता था । एक कोने में एक काष्ठ -मंजूषा, दूसरे में मिट्टी की एक कुम्भकारिका जल से भरी रखी थी । यही उस कुटी की सम्पदा थी । यह सब घूमती दृष्टि से देख देवी अम्बपाली उसी अमोघ वीणा को ध्यानपूर्वक देखती ठगी - सी रह गईं। उनके मस्तिष्क में कौशाम्बीपति उदयन का मिलन क्षण चित्रित होने लगा ।

युवक ने वेग से सिर का बोझ एक ओर कुटी के बाहर फेंक दिया । फिर वह भारी भारी पैर रखता हुआ कुटी में आया । पदध्वनि सुन अम्बपाली ने युवक की ओर देखा । युवक ने अचकचाकर कहा

“ अरे , अभी तक तुमने वस्त्र भी नहीं बदले ? न थोड़ा आहार ही किया ? वहां खड़े उस वीणा को क्यों ताक रहे हो मित्र । ”

“ किन्तु यह वीणा तुमने पाई कहां से ? ”अम्बपाली ने खोये- से स्वर में पूछा।

“ तो तुम इसे पहचानते हो मित्र ?

“ निश्चय , यह कौशाम्बी के देव - गन्धर्व- पूजित महाराज उदयन की अमोघ वीणा मंजुघोषा है, जो गन्धर्वराज चित्रसेन ने महाराज को दी थी । ”

“ वही है, पर तुम इसे पहचानते कैसे हो मित्र ? इसका इतिहास तुम्हें कैसे विदित हुआ ? यह तो अतिगुप्त बात है ? ”तरुण ने कुछ आश्चर्य - मुद्रा में कहा ।

“ मैंने इसे बजते हुए देखा है। ”

“ बजते हुए देखा है ? असम्भव ! ”

“ देखा है मित्र ! ”अम्बपाली ने अति गम्भीर स्वर में कहा ।

“ कहां ? ”

“ देवी अम्बपाली के आवास में ? ”

“ देवी अम्बपाली के आवास में ? किसने इसे बजाया था मित्र, तुम स्वप्न देख रहे हो

“ कदाचित् स्वप्न ही हो , नहीं तो यह वीणा इस एकान्त कुटी में ? आश्चर्य! अति आश्चर्य ! ”

“ परन्तु इसे तुमने बजते देखा था ? किसने बजाया था मित्र ?

“ पृथ्वी पर एक ही व्यक्ति तो इसे बजा सकता है। ”

“ महाराज उदयन ? ”

“ हां वही । ”

“ और वे देवी अम्बपाली के आवास में आए थे ? ”

“ गत वसन्त में महाराज ने वीणा बजाई थी और देवी ने अवश नृत्य किया था । ”

“ और तुमने वह नृत्य देखा था मित्र ? देवी अम्बपाली के नृत्य को देखने की सामर्थ्य किसमें है ? उनकी दासियां जो नृत्य करती हैं वही देव - दानव और नरलोक के लिए दुर्लभ है । ”

“ परन्तु मैंने देखा था , इस अमोघ वीणा के प्रभाव से अवश हो देवी ने नृत्य किया था । ”

तरुण कुछ देर एकटक देवी अम्बपाली के मुंह की ओर देखता रहा , फिर बोला

“ तुम सत्य कहते हो मित्र , पर क्या देवी अम्बपाली से तुम्हारा परिचय है ? ”

“ यथेष्ट है। ”

“ यथेष्ट ? तब तुम क्या मुझे उपकृत करोगे ? ”

“ आज के उपकार के बदले में ? ”अम्बपाली ने हंसकर कहा ।

“ नहीं - नहीं मित्र, परन्तु मेरी एक अभिलाषा है। ”

“ क्या उसे मैं जान सकता हूं ? ”

“ गोपनीय क्या है मित्र , मैं चाहता हूं, एक बार देवी अम्बपाली मेरे सम्मुख वही नृत्य करें । ”

“ तुम्हारे सम्मुख ? तुम्हारा साहस तो प्रशंसनीय है मित्र ! ” अम्बपाली वेग से हंस पड़ीं ।

तरुण ने क्रुद्ध होकर कहा - “ इतना क्यों हंसते हो मित्र ?

परन्तु अम्बपाली हंसती ही रहीं; फिर उन्होंने हंसते -हंसते कहा - “ खूब कहा तुमने मित्र , देवी अम्बपाली तुम्हारे सम्मुख नृत्य करेंगी ! क्या तुम जानते हो , देवी का नृत्य देखने के लिए देव - गन्धर्व भी समर्थ नहीं हैं ! ”

तरुण खीझ उठा, उसने कहा - “ जितना तुम हंस सकते हो हंसो मित्र, पर मैं कहे देता हूं, देवी अम्बपाली को मेरे सम्मुख नृत्य करना पड़ेगा । ”

“ और तुम कदाचित् तब यह वीणा उसी प्रकार बजाओगे, जैसे महाराज उदयन ने बजाई थी । ”अम्बपाली ने प्रच्छन्न व्यंग्य करते हुए कहा।

“ निश्चय ! ”तरुण के नेत्रों से एक ज्योति निकलने लगी ।

तरुण के इस संक्षिप्त उत्तर से अम्बपाली विजड़ित हो गईं। उन्हें महाराज उदयन की वह अद्भुत भेंट याद आ गई। उन्होंने धीमे स्वर से कहा -

“ क्या कहा ? तुम इस वीणा को बजाओगे ?

“ निश्चय ! ”तरुण ने कुछ कठोर स्वर से कहा ।

“ क्या तुम इसे तीन ग्रामों में एक ही साथ बजा सकते हो मित्र ? ”

“ निश्चय ! ”तरुण उत्तेजना के मारे खड़ा हो गया ।

अम्बपाली ने कहा - “ किसने तुम्हें यह सामर्थ्य दी , सुनूं तो !

“ स्वयं कौशाम्बीपति महाराज उदयन ने । पृथ्वी पर दो व्यक्ति यह वीणा बजा सकते हैं । ”

“ एक महाराज उदयन, ” अम्बपाली ने तीखे स्वर में पूछा - “ और दूसरे ? ”

“ दूसरा मैं ! ”तरुण ने दर्प से कहा ।

अम्बपाली क्षण - भर जड़ रहकर बोलीं -

“ अस्तु , परन्तु तुम मुझसे क्या सहायता चाहते हो मित्र ? ”

“ अति साधारण , तुम देवी तक मेरा यह अनुरोध पहुंचा दो कि वे यहां मेरी कुटी में आकर एक बार मेरे सम्मुख वही नृत्य करें जो उन्होंने अमोघ गान्धर्वी मंजुघोषा वीणा पर महाराज उदयन के सम्मुख किया था । ”

“ इस कुटी में आकर ! तुम पागल तो नहीं हो गए मित्र! तुम मेरे प्राणत्राता अवश्य हो , पर मैं तुम्हारा अनुरोध नहीं ले जा सकता। देवी अम्बपाली तुम्हारी कुटी में आएंगी भला ! ”

“ और उपाय नहीं हैं मित्र , देवी के उस कुत्सित सर्वजन-सुलभ आवास में तो मैं नहीं जाऊंगा ! ”

अम्बपाली के हृदय के एक कोने में आघात हुआ , परन्तु उन्होंने उस अद्भुत तरुण से कुटिल हास्य भौंहों में छिपाकर कहा

“ तुम्हारा यह कार्य मैं कर दूंगा तो मुझे क्या मिलेगा ? ”

“ जो मांगो मित्र, इस वीणा को छोड़कर । ”

“ वीणा नहीं, केवल वह नृत्य मुझे देख लेने देना ? ”

“ यह न हो सकेगा, मानव- चक्षु उसे देख नहीं सकेंगे। महाराज का यही आदेश है। ”

“ तब मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता। ”

तरुण ने खीझकर कहा -

“ जाने दो मित्र, मैं अपना कोई दूसरा मार्ग ढूंढ़ लूंगा । किन्तु अरे , अभी मुझे भोजन व्यवस्था भी करनी है ; तुम वस्त्र बदलो मित्र , मैं घड़ी भर में आता हूं। ”

तरुण ने बर्छा उठाया और तेज़ी से बाहर चला गया ।

अम्बपाली ने बाधा देकर कहा

“ इस अन्धकार में अब वन में कहां भटकोगे मित्र ? ”

“ वह कुछ नहीं, यह मेरा नित्य व्यापार है। वहां उस कन्दरा में मेरा आखेट है, मैं अभी लाता हूं। ”

तरुण वैसे ही लम्बे - लम्बे डग भरता अन्धकार में खो गया , अम्बपाली उसे ताकती रह गईं ।

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